रेड कार्पेट बिछाने के आदी अधिकारी नहीं माने तो योगी हए सख्त


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोचा होगा कि प्रशासन उनकी सादगी को समझेगा। उसी के अनुरूप उनके कार्यक्रमों में व्यवस्था की जायेगी। लेकिन सादगी के इस विचार से यहां का प्रशासन अनजान था। वर्षों से वह मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में ताम-झाम जुटाने का अभ्यस्त रहा है। खास किस्म के सोफे, एसी, रंगाई-पुताई, रेड कार्पेट आदि का इंतजाम अनिवार्य माना जाता था। एक पूर्व मुख्यमंत्री के आगमन से पहले सड़कों पर छिड़काव किया जाता था। वर्षों का यह अभ्यास आसानी से छूटने वाला नहीं था। योगी आदियनाथ को भी यह नजारा देखना पड़ा। लगातार दूसरी बार अधिकारियों ने उसी अंदाज में तैयारी की। सोचा होगा कि मुख्यमंत्री खुश होंगे। लेकिन हुआ उल्टा। मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई। अंततः उनके प्रमुख सचिव ने मंडलायुक्त, जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक को बाकायदा निर्देश जारी किया। इसमें कहा गया कि मुख्यमंत्री के यात्रा में ऐसा ताम-झाम न हो। अलग से कोई इंतजाम नहीं किये जायें। अधिकारियों ने विपक्ष और मीडिया को हमले का अवसर दे दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर में शहीदों के परिजनों से मिलने गएथे। उनके साथ समय बिताया। सम्वेदना व्यक्त की। यह विश्वास दिलाया कि इस आपदा में सरकार उनके साथ है। लेकिन सम्वेदना के ये पल पीछे हो गए। चर्चा वहां प्रशासन द्वारा किये गए इंतजामों की हुई। यहां रेड कार्पेट सड़क तक बिछाया गया। शहीद के घर का रंग-रोगन किया गया। नया सोफा, कूलर लगाया गया। पहली बार ऐसा हुआ था, तब इसे सम्बंधित अधिकारियों गोरखपुर शला का परिजनों से मिलने गएगोरखपुर में शहीदों के परिजनों से मिलने गएथे। उनके साथ समय बिताया। सम्वेदना व्यक्त की। यह विश्वास दिलाया कि इस आपदा में सरकार उनके साथ है। लेकिन सम्वेदना के ये पल पीछे हो गए। चर्चा वहां प्रशासन द्वारा किये गए इंतजामों की हुई। यहां रेड कार्पेट सड़क तक बिछाया गया। शहीद के घर का रंग-रोगन किया गया। नया सोफा, कूलर लगाया गया। पहली बार ऐसा हुआ था, तब इसे सम्बंधित अधिकारियों की गलती या पहले का अभ्यास माना जा सकता था। लेकिन दुबारा फिर ऐसा करना गलत मंशा की ओर इशारा करता है। पिछली बार देवरिया में भी ऐसी बातें मीडिया में प्रमुखता से आई थीं। मीडिया की कोई गलती नहीं। उसने जो देखा उसे बयान किया। इस प्रकार मीडिया ने प्रशासन की नासमझी उजागर की थी। लेकिन इससे सबक नहीं लिया गया। प्रशासन में ऐसे अधिकारी भी हैं, जो मुख्यमंत्री की जीवनशैली व कार्यशैली समझने को तैयार नहीं हैं। 


समझने को तैयार नहीं हैं। योगी आदियनाथ संन्यास धर्म की जीवन शैली पर अमल करते हैं। भौतिक सुख सुविधाओं के प्रति उनकी कोई आसक्ति नहीं है। उनको एसी, कूलर, शानदार सोफे आदि की आदत भी नहीं है। वह अति सादगी का जीवन व्यतीत करते हैं। अभी उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में महंगी मर्सिडीज कार लेने से इंकार कर दिया। जबकि उन्हें इसके लिए नया कुछ नहीं करना था। यह तो परंपरा बन गई थी। योगी को केवल उस पर अमल करना था। फिर भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।कहा भी कि जिस प्रदेश में आमजन के पास सुविधाओं का अभाव हो वहां मुख्यमंत्री को इतनी महंगी कार से नहीं चलना चाहिए। ऐसा करके योगी प्रशासन व अपने सहयोगियों को भी सादगी का संदेश देना चाहते थे। लेकिन रेड कार्पेट बिछाने वाले अधिकारियों ने इसकी अवहेलना की है।इन्होंने मुख्यमंत्री ही नहीं मानवीय संवेदना के प्रतिकूल आचरण किया है। अन्य कोई अवसर होता तो इन बातों को नजरअंदाज भी किया जा सकता था। लेकिन यहां मुख्यमंत्री शहीद के परिजनों से मिलने आये थे। यह परिवार अभी वज्रपात से आहत था। वहां इतना ताम-झाम फैला दिया गया। जबकि उस मुहल्ले या गांव में भी उदासी का माहौल होता था।वहां रेड कार्पेट बिछाया जा रहा था, नया सोफा, कूलर लगाया जा रहा था। यह क्यों न माना जाये कि प्रशासन यह बताना चाहता था कि कुछ देर के लिए भी इतने इंतजाम जरूरी हैं।


दूसरा यह कि शहीद के परिवार में ये सब भौतिक सुविधाएं नहीं हैं जबकि योगी आदित्यनाथ को इन सबकी जरूरत ही नहीं थी। संन्यास के साथ उन्होंने जमीनी राजनीति की है। साधारण लोगों के घर जमीन पर बैठना, वहीं भोजन करना उनके लिए सामान्य बात थी। आज भी उनकी जीवनशैली में उतनी ही सादगी है। लेकिन प्रशासन ने यहीं तक गनीमत नहीं रखी। पिछली बार भी मुख्यमंत्री जिस शहीद परिवार में गए थे, वहां भी यही हुआ था। मुख्यमंत्री के जाते ही सोफे, कूलर आदि सभी को वापस उठवा लिया गया। इससे पता चलता है कि मानवीय व सामाजिक सम्वेदना का इनके लिए कोई महत्व नहींशहीदों के परिजनों पर क्या बीती, इससे कोई लेना-देना नहीं। केवल मुख्यमंत्री खुश हो जाये तो इनका जीवन धन्य हो जाए। इस प्रकार की मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है। सरकार व प्रशासन क्या कर सकता है, यह अपनी जगह पर है। मुख्यमंत्री ने आर्थिक सहायता भी दी। क्या यह नहीं हो सकता था कि सोफा कूलर आदि लगाये गए थे तो उनको उठवाया न जाता। 


क्या प्रशासन के अधिकारी निजी तौर पर मिल कर ऐसा नहीं कर सकते थे। ये इंतजाम न होते तब ठीक था। यदि कर ही दिया था तो उसे हटवाना नहीं चाहिए था। यदि प्रशासन के लोग आर्थिक रूप से बहुत कमजोर थे तो समाज के अन्य लोगों का सहयोग लिया जा सकता था। शहीदों के प्रति समाज में बहुत सम्मान का भाव होता है। सम्बंधित अधिकारियों ने सीमित सोच का परिचय दिया था। मुख्यमंत्री ने इसे गम्भीरता से लिया। यह बात कुछ यात्राओं पर ही लागू नहीं है। मुख्यमंत्री फिजूलखर्ची रोकना चाहते हैं।